March 18, 2024
Santosh singh bundela biography in hindi

संतोष सिंह बुंदेला का जीवन परिचय | Santosh Singh Bundela

नमस्कार दोस्तो, आपको संतोष सिंह बुंदेला के बारे में तो जरूर पता होगा, या फिर आपने कहीं ना कहीं तो अपने जीवन के अंतर्गत संतोष सिंह बुंदेला के बारे में सुना होगा, आज के इस आर्टिकल के अंतर्गत हम आपको संतोष सिंह बुंदेला का जीवन परिचय (santosh singh bundela ki visheshtaen) बताने वाले हैं, यदि आपको इस विषय के बारे में कोई जानकारी नहीं है, तो इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको इसके बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।

हम आपको इस पोस्ट के अंतर्गत हम आपको संतोष सिंह बुंदेला का जीवन परिचय (santosh singh bundela ki kavyagat visheshtaen bataiye) बताने वाले हैं, तथा इसके अलावा हम आपको इस विषय से जुड़ी हर एक जानकारी इस पोस्ट में देने वाले हैं।

संतोष सिंह बुंदेला का जीवन परिचय

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santosh singh bundela ka jivan parichay
Full Name ( पूरा नाम ) संतोष सिंह बुंदेला
Nick Name ( निक नाम ) संतोष
Profession (पेशा) कवि
Famous For ( प्रसिद्धि ) कविता रचना

सबसे पहले हम आपको थोड़ा सा संतोष सिंह बुंदेला के बारे में जानकारी दे देते हैं कि आखिर यह कौन थे, तो संतोष सिंह बुंदेला इतिहास के एक बहुत ही महान कवियों की सूची के अंतर्गत आते हैं, तथा इनके द्वारा अन्य किसी कविताओं की रचना की गई है, जो आज के समय पूरी दुनिया भर के अंतर्गत काफी प्रसिद्ध है, तथा इनको हजारों लोगों के द्वारा पढ़ा जाता है तथा उन्हें पसंद किया जाता है।

संतोष सिंह बुंदेला का जन्म मध्य प्रदेश के बिजावर नामक गांव के अंतर्गत 1 फरवरी सन 1930 को हुआ था। जमीन के इतिहास के बारे में पढ़ा जाता है, तो ऐसा बताया जाता है कि यह बचपन से ही काफी ज्यादा साहसी थे, तथा इसके अलावा और अधिक जानकारी तथा उनके परिवार के बारे में अलग-अलग प्रकार की जानकारी अभी तक मालूम नहीं है, तथा इनके इतिहास के बारे में अधिक जानकारी इतिहास के अंतर्गत दर्ज नहीं है, तो ऐसे में हमें इनके व्यक्तिगत जीवन तथा इनके बचपन के बारे में बहुत ही कम जाने को मिलता है।

इनका बचपन से ही काव्य के अंतर्गत काफी मन रहा था, तथा उनके द्वारा अलग-अलग प्रकार की रचनाओं को लिखा गया है, जिनमें उन्होंने अपने जीवन के अंतर्गत प्रकृति को एक काफी महत्वपूर्ण स्थान देते हुए अलग-अलग प्रकार की रचनाओं की रचना की है, उन्होंने इन रचनाओं के अंतर्गत बताया है, कि किस तरह से प्रकृति हमारे लिए महत्वपूर्ण है, क्या प्रकृति का हमारे जीवन में योगदान रहा है, इसके अलावा भी इनके द्वारा देशभक्ति के ऊपर अलग-अलग प्रकार की रचनाओं की रचना की गई है।

संतोष सिंह बुंदेला के बाद के जीवन से यह देखने को मिलता है, कि यह समाज से काफी ज्यादा जुड़े हुए थे, तथा यह समाज को इकट्ठा करके रखना चाहते थे, तो ऐसे में इस समाज को इकट्ठा करने के लिए भी इनके द्वारा अलग-अलग प्रकार की कविताओं को लिखा गया है, तथा इनको आज भी काफी ज्यादा पढ़ा जाता है, तथा यदि कोई भी व्यक्ति इन कविताओं को पड़ता है तो उसको काफी ज्यादा आनंद मिलता है।

इन सभी के अलावा कभी संतोष सिंह बुंदेला के द्वारा अलग-अलग प्रकार के कार्यक्रमों का भी आयोजन करवाया जाता था जिनके अंतर्गत बाय प्रकृति से संबंधित सोशल कार्यों से संबंधित तथा अलग-अलग विषयों से संबंधित संदेश देते थे तथा अपनी कविताओं का गुणगान करते थे।

संतोष सिंह बुंदेला कि कुछ महत्वपूर्ण कविताएं

वैसे तो कवि संतोष सिंह के द्वारा अपने जीवन के अंतर्गत अनेक कविताओं की रचना की गई है, तथा उन कविताओं को काफी ज्यादा प्रसिद्धि मिली है, लेकिन हमने यहां पर आपको इनके जीवन की कुछ प्रसिद्ध कविताओं के बारे में बताया है :-

  1. मिठुआ है ई कुआ कौ  नीर
  2. जबसे छोडो है  अपनो गांव
  3. लमटेरा की तान
  4. बापू अबै न आए!
  5. बिटिया
  6. दुखिया-दीन गमइयाँ
  7. गौरीबाई

कवी के द्वारा लमटेरा की तान नमक एक काफी पर्सिद कविता की रचना की गई थी, जो पूरी दुनिया भर में काफी परषिद हुयी थी, लमटेरा की तान कविता निम्न प्रकार से है,

लमटेरा की तान

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हमारे लमटेरा की तान,

समझ लो तीरथ कौ प्रस्थान,

जात हैं बूढ़े-बारे ज्वान,

जहाँ पै लाल धुजा फहराय।

नग-नग देह फरकबै भइया,

जो दीवाली गाय।।

दिवारी आई है,

उमंगै लाई है।

आज दिवारी के दिन नौनी लगै रात अँधियारी,

मानों स्याम बरन बिटिया नैं पैरी जरी की सारी।

मौनियाँ नचै छुटक कैं खोर,

कि जैसें बनमें नाचैं मोर,

दिवारी गाबैं क-कर सोर, कि भइया बिन बछड़ा की गाय।

बिन भइया की बहिन बिचारी गली बिसूरत जाय।।

भाई दौज आई है,

कि टीका लाई है।

आन लगे दिन ललित बसन्ती फाग काउ नैं गाई।

ढुलक नगड़िया बजी, समझ लओ कै अब होरी आई।।

बजाबैं झाँजैं, झैला, चंग,

नचत नर-नारी मिलकें संग,

रँगे तन रंग, गए हैं मन रंग, कहरवा जब रमसइँयाँ गाय।

पतरी कम्मर बूँदावारी, सपनन मोय दिखाय।।

अ र र र र होरी है,

स र र र र होरी है।

गाई चैतुअन नैं बिलवाई, चैत् काटबे जाबैं।

सौंने-चाँदी को नदिया-सी पिसी जबा लहराबैं।।

दिखाबैं अम्मन ऊपर मौर,

मौर पर गुंजारत हैं भौंर,

कि मानौ तने सुनहरे चौंर, मौर की सुन्दर छटा दिखाय।।

चलत लहरिया बाव चुनरिया, उड़-उड़ तन सैं जाय।।

गुलेलें ना मारौ

लँयँ का तुमहारौ!

गायँ बुँदेला देसा के हो, ब्याह की बेला आई।

ब्याहन आए जनक जू के घर, तिरियन गारी गाई।।

करे कन्या के पीरे हाँत,

कि मामा लैकें आए भात,

बराती हो गए सकल सनात, बिदा की बेला नीर बहाय,

छूट चले बाबुल तोरे आँगन, दूर परी हौं जाय।।

खबर मोरी लैयँ रइयो,

भूल मोय ना जइयो।

बरसन लागे कारे बदरा, आन लगो चौमासौ।

बाबुल के घर दूर बसत हैं, जी मैं लगो घुनासौ।।

उमड़ो भाई-बहिन कौ प्यार,

कि बिटिया छोड़ चलीं ससुरार।

है आ गओ सावन कौ त्यौहार कि भइया राखी लेव बँदाय।

माँगैं भाबी देव, नौरता खाँ फिर लियो बुलाय।।

और कछु नइँ चानैं,

हमें इतनइँ कानैं।

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निष्कर्ष

तो इस पोस्ट के अंतर्गत हमने आपको संतोष सिंह बुंदेला की काव्यगत विशेषताएँ लिखिए | santosh singh bundela ki kavyagat visheshtaen likhiye के बारे में बताया है, तथा उनके जीवन के कुछ महत्वपूर्ण विषयों के बारे में बताया है , इसके अलावा इस विषय से जुड़ी अन्य जानकारी अभी हमने आपके साथ शेयर की है। हमें उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई है, फिर तो आपको इस पोस्ट के माध्यम से कुछ नया जानने को मिला है।

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